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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

चांदड़लो गिगनार

 
 
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चांदड़लो गिगनार
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चांदड़लो    गिगनार।

परदेसां में पीव अमूझै,
महलां  बैठी  नार।।
 
 
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चुड़लो, नाथ,बोरलो, बिछिया,
पायळ    री    झणकार।

थां  बिन  छेल  भंवर सा,
म्हारो  बदरंगी  सिणगार।

काळजियो कळपै किरळावै
 नैणां  झारम-झार।।
 
 
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गिणता-गिणता आंगळियां पर,
दिन  बदळ्या  बण   मास।

नणदोई  जी  नणदल साथै,
थै  क्यूं  नीं   हो   पास।

पल-पल म्हारो जीव पतीजे,
मनड़ो तारम-तार।।
 
 
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बसंत बीतग्यो बासी पड़गी,
फागण     री   फगुवार।

चेता चूक  चेत  सावणियो,
नैणां     काजळ   सार।

कुरजां कैइजो सायब जी नै,
आओ लारम-लार।।

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