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हरदड़ै रो हरियो चोर, खोलै खिड़की बोलै मोर.!
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-राज बिजारणियां
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'गुङायदे, चिबले, मार अमाड़ो, चाल पिदीड़ा, ठारनाख अर वाह खब्बूङा वाह!' जेङै कितरा ई बोलां री रम्मक-झमक फागण रैआं दिनां में हरेक गाँव-गळी-गुवाड़ में आपरो रंग दिखावै। आ रिमझोळ निगै आवै हरदड़ो खेल रै रसिया में।
संस्कृति अनै संस्कारां री साख भरता ग्रामीण खेलां रै खजानै रो ओ एक सांतरो मोती। टाबर तो टाबर, बूढा-बडेरा'ई बालपणै रै चितरामां में हब्बाबोळ हुयोड़ा, घणै जोस सूं हुंकार भरै। इण विरासत नै परोटै-टंडवाळै। अडबळी, खटकण, हिंगदड़ो इत्याद कई नावांरै धणी इण खेल रै वजूद नै बचावण री जुगत पण बरकरार।
स्योरात रै पावण दिन सूं इण खेल री सरूआत। अर होळी रै सैं दिन तांई इण री धमक परवान चढै। खेलती बेळा मंड्या पाणा किणी रणभोम सूं निजोरा निजरनीं आवै। खेल सरू हुवणै सूं पैलां दो पाणा मंडै। बराबर-बराबर भीरू बंटै। खेल सरू हुवै। दो ठीयां (इंर्टया भाटां) पर बाँस री बळी मेल'र पूर री दड़ी सूं बळी नै गुङावण रो सिलसिलो सरू व्है। हारेङै पाणै रा गळ्योड़ा (आऊट हुयोड़ा) भीरू पिदाई चुकावै। जीत्योड़ै पाणै रो एक-एक खिलाड़ी बारी-बारी सूं अमाड़ा लगावै। पीदणवाळा दड़ी नै एक ही ठोकर में जे पाछी पाणै में पुगाय देवै या दोनूं हाथां सूं चिब लेवै तो सा'मलो अमाड़ा लगाय रैयो खिलाड़ी उतर जावै। अमाड़ो लाग्योड़ी दड़ी जे खबियै हाथ सूं चिब लेवै तो सगळो पाणो ही गळ जावै अर हरदड़ो फेरूं नूंवै सिरै सूं सरू हुवै। जीत्योड़े पाणै रो कोई भीरू गळै नींतो बो घी रो घड़ो गिणी जै।
इण बगत खिलाड़ी खेलता-खेलता आपरा सुर भी काढ़ता जावै-
'हरदड़ै रो हरियो चोर, खोलै खिड़की बोलै मोर।'
हरदड़ो मौज-मस्ती, भाईचारै अर आपसी मेळ-मिळाप रो प्रतीक। होळी मंगळावै तो साथै ही हरदड़ै नै ई मंगळापरा फेरूं अगलै बरस री स्योरात ताईं अडबळीसूं करै राम-राम।