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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

रविवार, 14 नवंबर 2010

मेरे सवालों का जवाब तुम


मेरे सवालों का जवाब तुम

( -राज बिजारणियां )

प्रिय.!
तुम्हारे अधरों की
पालकी पर सवार स्मित.!
आह्लादित कर देती है
मेरे सुसुप्त मन को।

 सौंदर्य की
 पराकाष्ठा को लांघती
पलकों का तुम्हारी
आहिस्ता से उठना.!
 बना देता है
विवश मुझे
गज़ल लिखने पर।

सुर्ख गालों से
ठिठोली करती सर्पीली लट
जब खेलती है
 तुम्हारी
 नजाकत भरी अंगुलियों से
आंख मिचौली!
 तब पाणिपोरों में मेरे भी
 होने लगती है हरारत.!

तुम्हारे
सुरमई नयनों की
संध्या सिंदुर से चुराई लालिमा
खींच देती है क्यों.?
मेरी आंखों में भी रतनारी डोरे।

 आखिर क्यों
उस दिन भी
जब नाग कन्याऐं
थामकर रास सूर्याश्वों की
खींचकर
 ले जाने लगी
 पाताल लोक में

तब तुम्हारे
चक्षुओं की दहलीज से
 ढुलक आए अश्रु
सिरहन बनकर
दौङ उठे
 रग-रग में मेरी.!
मेरे तमाम अनसुलझे
सवालों का जवाब
तुम ही तो हो..!!

 मैं हूं शशि
 तुम साक्षात मार्तण्ड।
तुम ही बनती हो
 मेरी ऊर्जा का स्रोत।

"वितान"

राज बिजारणियां की चित्र प्रदर्शनी "वितान"
एक नज़र में ..!!