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LOONKARANSAR, RAJASTHAN, India
..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

फर्क

मुठ्ठी में

कस’र दाब्योङो

जीवण

छिणक में

सुरसुरा’र बण जावै रेत!

पानां री ओळ्यां में पळती प्रीत

जोङ’नै पानै सूं पानो

हर‍यो करद्‍यै हेत!

फर्क कांई.? देख.!

एकै कानी प्राण बिहुणा

दूजै कानी म्है’क.!!

पाणी

पाणी!

फगत पाणी हुवै

न्है’र में बैंवतो

झरणै सूं हींडतो

दूर हुवै

भेद-अभेद सूं!

नाजोगो माणस!

कुण्ड

माटकी’र

लौटै रो

पीव’नै सीतळ पाणी

उकळतो-उफणतो

कियां उतार देवै

छिणक में

मुळकतै मूंढां रो पाणी.!

कूङ -आतम बिसवास

लखदाद है.!

लोग बोल जावै

साव धोळो कूङ

घणै आतम बिसवास साथै।

अब बताओ

कूङ पर करां झाळ

का सरावां उणारै

आतम बिसवास नै.!

रचाव

कविता कोनी

फाङ’र धरती री कूख

चाण’चक उपङ्‍यो भंफोड.!

कविता कोनी

खींप री खिंपोळी में

पळता भूंडिया

जका

बगत-बेगत

उड। जावै

अचपळी पून रो

पकड। बां’वङो.!

नीं है कविता

खेत बिचाळै

खङ्‍यो अङवो

जको

ना खावै ना खावणद्‍यै।!

कविता सिरजण है

जीवण रो!

अनुभव री खात में

सबदां रा बीज भरै

नूंवीं-नकोर आंख्यां में

सुपनां रा

निरवाळा रंग।

अब बता-

कींकर कम हुवै

सिरजणहार रै सिरजण सूं

कवि रो रचाव.?

-राजूराम बिजारणियां "राज"

श्री लक्ष्मी फोटो स्टेट,

लूनकरणसर (बीकानेर)

फोन नं। 9414449936

raj_slps@yahoo।com

बुधवार, 25 मार्च 2009

प्रीत'ई गूंगी है

ग़ज़ल

-(राज बिजारनियां)

मानखो तो मून प्रीत'ई गूंगी है

सामीं छाती घाव पीड़ डून्गी है

लीर-लीर हुई जावै आँख फाड़ देख

दादू री दोवटी रहीम री लूंगी है

छोड़ बाम्बी ठाट सूं सांप घूमै हाट में

गतागूम जोगीजी वस हुई पूंगी है

बात तो है सांच सांच नै आंच कठै

मौत साव सस्ती जिन्दगाणी मूंघी है

शनिवार, 24 जनवरी 2009

आदाब अर्ज है

ग़ज़ल

(-राज बिजारनियाँ )

बदली निगाहें मेरी ज़माना बदल गया

ख़्वाबों के बदले रंग फ़साना बदल गया

ना होश है सऊर ना कोई ख़याल है

मन मस्त है अपने में तराना बदल गया

चाँद से गुस्ताखियाँ तारों की देखकर

सांझ का सूरज को बुलाना बदल गया

मेघा के अश्क देखकर अवनी की मांग में

आसमां का हंसना हंसाना बदल गया

कोसता है सीप को पगलाया पपीहा

जबसे है स्वाति बूँद घराना बदल गया

'राज' के लबों पे सोया गहरा राज़ है

हौले से मुहब्बत का खजाना बदल गया

रंगीलो राजस्थान

राजस्थानी गीत

सावण री सुगंध ..!

(-राज बिजारनियाँ )

खेतां री मेडा पर घुमां धूड लागगी पाँव मांय

सावण री सुगंध सखी आवै म्हारै गाँव मांय

काळी कंठी बाँध कलायण

लीलै आभै चढ़ आवै

सतरंगी सुपनां रो धनुवो

हरख-हरख मनडै भावै

गड़-गड़ करता गड़ा गठीला पड़-पड़ पङता ठांव मांय

सावण री सुगंध सखी आवै म्हारे गाँव मांय

धोरे ढलता खेत-खेडीया

खींपो-खींप खींपोळी है

रोहीडो रोही रो राजा

फूलां केसर घोळी है

खेती सेती गळ-गळ काया करसै री नित दांव मांय

सावण री सुगंध सखी आवै म्हारे गाँव मांय

हीयो हुळसै हींड हींडता

गौरी घूँघट सरमावै

तपतै सूरज एक छांवलो

गीत जीत रा नित गावै

घणी थाकगी रूप-रुपाळी आ बैठ रूंख री छाँव मांय

सावण री सुगंध सखी आवै म्हारे गाँव मांय

दीयाळी रै दीयां री लौ

प्रीत रीत री बात करै

गोगो आखातीज सावणी

घर-घर में सौगात धरे

आणो-जाणो तीज त्यूंहारा मरण-परण नै नावं मांय

सावण री सुगंध सखी आवै म्हारे गाँव मांय

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

मानस-मंथन

होने दो एक बार ..!

-(राज बिजारनियाँ)

होने दो एक बार प्रलय ..!

फिर से मनु नव पल्लव संग

सृष्टी का निर्माण करेगा

तमस घना सकुचाएगा

प्रकाश पुंज कोई तब अवनी पर

ज्योतिर्मय हो दमकेगा !

फिर से धरा यह अति प्रसन्न हो

सुधाघट का पान करेगी

श्रद्धा करबद्ध हो फिर से

जीवन का आह्वान करेगी !!

बुधवार, 7 जनवरी 2009

आस

आस

(-राज बिजारणियां )

फेरूं-

जळ जावै

बुझतां दिवलां री लौ

सम्भळ जावै

गिरतां-पड़तां

सोच परो माणस-

कांई दूर-कांई ..?

जद ताईं जीवंती है

आस