होने दो एक बार ..!
-(राज बिजारनियाँ)
होने दो एक बार प्रलय ..!
फिर से मनु नव पल्लव संग
सृष्टी का निर्माण करेगा
तमस घना सकुचाएगा
प्रकाश पुंज कोई तब अवनी पर
ज्योतिर्मय हो दमकेगा !
फिर से धरा यह अति प्रसन्न हो
सुधाघट का पान करेगी
श्रद्धा करबद्ध हो फिर से
जीवन का आह्वान करेगी !!