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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

मैं बेटी

 
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मइया मुझको जीना है

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पहली धड़कन
ज्यों ही धड़की
जाने कितनी
आंखें रड़की
प्रश्न पूछता
कोना कोना
मां चुप क्यों हो
कुछ तो कहो ना
 
माथे पर क्यों पसीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
दादी रूठी
चुप क्यों दादा
बाबुल तेरा
क्या है इरादा
गुमसुम आंगन
कहता मुझसे
कोई ना चाहे
मिलना तुझसे
 
जीवन चार महीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
देखूं मैं भी
चांद सितारे
हंसती नदियां
सागर खारे
मैं चाहूं कि
झूला झूलूं
बादल चढकर
अम्बर छूलूं
 
हक काहे को छीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
 
 

मां कहकर मैं
तुमको पुकारूं
घण्टो सूरत
तेरी निहारूं
घुटनों के बल
दौड़ूं अंगना
तेरे जैसे
पहनूं कंगना
 
नाचे मन तक् धिन्ना है
मइया मुझको जीना है
 
 
तितली के मैं
रंग चुराऊं
खुश्बू बन घर
तेरे आऊं
मैं चाहूं मां
तेरा आंचल
आंख समाऊं
बनकर काजल
 
रिस्ता फिर क्यों झीना है
मइया मुझको जीना है
 
 

मेरा मुझको
दोष बता दे
फिर चाहे जो
मुझे सजा दे
मैं बेटी तो
तुम भी बिटिया
सांसे लिखती
तुमको चिठियां
 
जीवन का जल पीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
मुरझाई है
घर की क्यारी
डरती तेरी
राजदुलारी
मत रोको ना
आने दो मां
हंसने दो मां
गाने दो मां
 
बेटी खुश रंग हीना है
मइया मुझको जीना है

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