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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

बुधवार, 20 अगस्त 2008

कविता

कहाँ गई वो आजादी..?

हाथ पसारे भूखे प्यासे, नंगा नाच दिखाते हैं

चंद गेहूं के दानों खातिर, अपना लहू बहाते हैं

यहाँ-वहाँ खड़े हैं आहत, हाथ जोड़े ये फरियादी

कहाँ गई वो आजादी..?

भारत माँ के लाल-लाडले, तन पर नहीं लंगोटी है

कहीं बिलखते भूखे बच्चे, किसी हाथ में रोटी है

कैक्टस के जंगल की भांति बढ़ रही है आबादी

कहाँ गई वो आजादी..?

थैला भर नोटों के बदले, मुठ्ठी भर राशन पाते हैं

भरी दोपहरी रोते बच्चे, सबका दिल दहलाते हैं

अजगर बन गरीबी बढ़ती, चहुँ ओर है बर्बादी

कहाँ गई वो आजादी..?

गंगा का आंचल है मैला, घायल आज हिमालय है

भ्रष्टों से भगवान भी भागे, सूने पड़े शिवालय है

कंगूरों की चाहत सबको, नहीं नींव है बुनियादी

कहाँ गई वो आजादी..?