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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

सोमवार, 25 अगस्त 2008

माँ में नेह अपार

(-राज बिजारनियाँ )

माँ के चरण कुरान है, बोली गीता सार

सब ग्रंथों की बानगी, माँ में नेह अपार

माँ की सेवा तीर्थ है, पूजा चारों धाम

माँ की करले बंदगी, वही रहीमन राम

क्या मदिना क्या अवध में, क्या काबा हरिद्वार

पान किया जिस दूध का, पावन गंगाधार

अपने मन को मारती, रोज हारती प्राण

ख़ुद की चिंता छोड़कर , रखती तेरा ध्यान

कोख में नौ माह तलक, पलछिन पाला जीव

जिसमें रमकर रात-दिन, भूली अंगना पीव

कतरा-कतरा दूध का, बना सुधारस धार

उसके बल खेता रहा, जीवन की पतवार

माँ तो दरिया प्रेम का, माँ है बैंकुट द्वार

चरण थामकर बावले, भवसागर कर पार

ख़ुद गीले में रात भर, तुझको रखती सूख

मल धोती मल पौंछती , नहीं ज़रा भी चूक

ना तो सिमरूं देवता, ना रखता उपवास

माँ की सेवा बंदगी, चरण धूलि अरदास

गंगा यमुना सरस्वती, झेलम सतलज व्यास

इन नदियों से ना बुझे, माँ चरणों की प्यास