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LOONKARANSAR, RAJASTHAN, India
..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

राजस्थानी गंगा

ग़ज़ल

( राज बिजारनियाँ )

पाप रा धूप जळावै क्यूं

काया रोज गळावै क्यूं

काचरिया रो मोह छोडनै

तूम्बा बैल बधावै क्यूं

जिया जूण रा सांसा इतरा

मनडै नै भरमावै क्यूं

खोटा-खोटा काम घणा कर

जीवन बिरथ गमावै क्यूं

करम थांरा ई आडा आवै

आंसूडा ढळकावै क्यूं

ले गेंहू रा स्वाद सबडका

बाजरडी बिसरावै क्यूं