ग़ज़ल
( राज बिजारनियाँ )
पाप रा धूप जळावै क्यूं
काया रोज गळावै क्यूं
काचरिया रो मोह छोडनै
तूम्बा बैल बधावै क्यूं
जिया जूण रा सांसा इतरा
मनडै नै भरमावै क्यूं
खोटा-खोटा काम घणा कर
जीवन बिरथ गमावै क्यूं
करम थांरा ई आडा आवै
आंसूडा ढळकावै क्यूं
ले गेंहू रा स्वाद सबडका
बाजरडी बिसरावै क्यूं