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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

गज़ल

 
 
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सदा  डांग पर  डेरा अब तो छात दे
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थांरी  थळगट  सिर झूकै  औकात दे
डाळी  लटकै  फूल  एकलो  पात दे
 
 
नाड़ ताणली  कांटा  कळियां कुमळाई
हवा,  रोसणी,  पाणी  साथै  खात दे
 
 
उमर गाळदी आखी रुळतां  खोड़ां में
सदा  डांग पर  डेरा अब तो छात दे
 
 
बदळै रंग हजार पलक में किरड़ै ज्यूं
बां  चैरां  रै  मनसूबां  नै  मात  दे
 
 
हिंदु मुसळिम सिख  ईसाई न्यारा क्यूं
जै देणो तो  सबनै  माणस  जात दे


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