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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

गज़ल





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आंख आंख में  अब खटकै
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प्रीत  तकादो   कर   हारी
थांरै   मनड़ै   के    धारी
 
 
भूख तिरस सुध-बुध बिसरी
नींदड़ली    लागै    खारी
 
 
मुळकै  जद पलकां  झपकूं
बांकी  तिरछी  छिब  थारी
 
 
आंख आंख में  अब खटकै
चांद- चकोरी  सी   यारी
 
 
देय दरस  अब  तारो ज्यूं
कान्है   मीरां   नै   तारी


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