सुरग सरीखो ..!
-(राज बिजारनियाँ )
चाल बेलीड़ा म्हारै गाँव
खेजड़ल्यां री ठंडी छाँव
बूजा, बांठ , फोगडा ठो'ळ
उभा धोरा करै किलोळ
जठै बिराजै सगला देव
काचर, बोर, मतीरा-मेव
पोखर, नाडी, पाळ तळै
नान्हा-मोटा जीव पळै
गळी -कूंट नै उणा-खू'ण
देव-देवळी सजळ धूण
दुःख सबरो है एक जठै
सुख सबरो है एक बठै
एक जठै है तीज-त्यूंहार
एकै भेळप सीर-संस्कार
खेत-खेडिया धान घणो
आव बटाऊ मान घणो
घणो हेत नै प्रीत घणी
मन रंग राची रीत घणी
सावण आवण आस घणी
खोड़ फूटता घास घणी
घणो आदरयो संत-कबीर
लाड लडायो कवियां-वीर
सुरग सरीखी मायड़ भौम
नित गुण गावै रोम-रोम