वही ढ़ाक के तीन पात हो गयी
(-राज बिजारनियाँ)
सांझ से सूरज मिला कि रात हो गयी
आँख के डोरे तने और बात हो गयी
आदम उतरा आसमां से पाक रूह में
लग हवा धरती की न्यारी जात हो गयी
प्यादों की सरकार अनूठी चलती है
सर खुजलाए शाह कैसे मात हो गयी
ख़ुद से ज्यादा रख भरोसा देखा तो
नहीं समझ में आया भीतरघात हो गयी
कितनी बार बदलकर सत्ता देखी 'राज '
वही ढ़ाक के तीन पात हो गयी