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स्याही कागज पर गिरके 'राज',
तकदीरे फ़साना लिखती है !
बनकर फिर अखबार कोई,
इतिहासे जमाना लिखती है !
लोग गवाही देते हैं ,
संग शब्द साक्षी बनते है !
दग्द हृदय के छालों का फिर,
करके बहाना लिखती है !!