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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013


आदरजोग आईदानसिंह जी भाटी रो कागद मिल्यो। जिण में आईजी सा म्हारै कविता संग्रै "चाल भतूळिया रेत रमां" माथै लिख्यो है। उणा रो कागद आप साथै सेयर करूं -



नांदङी,बनाङ रोङ,जोधपुर।
१४ अप्रेल २०१३

प्रिय श्री राजूराम जी,
                              सहेत नमस्कार।

थांरी किताब बांची। चाल भतूळिया रेत रमां। म्हनै थारा आखरां में म्हारी लिखियोङी जूनी अर नवी कवितावां री छिब मिळी। "धरती होळै भंवै", "बुगचौ" इत्याद कवितावां अर कीं दूजी ई कवितावां। जीव सोरौ हुयग्यौ। विकास रै नावं माथै ऊजङता घर-गांव। ऊजङतौ सपनां रौ संसार। नुगरा कांई जाणै सपनां रौ मरम.! गांव-गोरवां रौ अरथ.!! थांरी कवितावां में सपना पळै। प्रीत अर हेज रा सपना।सपनां में जिकौ फूटरापौ, जिका रंग थै भरिया हौ, वै रंग ई मिनखपणै रा रंग है.!

म्हैं हरीशजी भादाणी अर माणिक बच्छावत री कवितावां पछै इतरी फूटरी रीत माथै थांरी कवितावां बांची। रेत री संस्क्रिति नै औ "विकास" नांव रौ आथूणौ अधकचरौ कांई भतूळियौ उडा नीं नाखसी.? कांई थारी दीठ रै हेत सूं औ रेत सूं रम सकैला.? म्हरै ऐथ तौ ऐक बखत नारौ हौ -"रेगिस्तान हटावौ। अर अबै म्हनै लागै, नारौ लगावणौ पङैला--"रेगिस्तान बचाऔ"। विकास रै नांव माथै सपनां रौ "विणास" कींकर देख्यौ जावै.? थांरी कवितावां इण कथिथ विकास री थाप खायोङी कवितावां है, पण थाप सांमी उभी मुळकै। आ मुळक ई इण कवितावां री खासियत है।

बाखळ, बाबल, मालजादो, ठाण, ढांडा, छपरिया, गुङकै, पळींडै, पाळ, जुहार, गेङा, दकाळ, सैंथीर, हथाई, कांगसी, अकूरङी, थळगट, टमरका, भुंवाळी, झींटिया, बिसूंज्या, तिबारी, गळूंचिया, सांवटती, औळावै, फिरोळती, नागौरण, उगेरया, पङाल, डोभा, खिंपोळ्या, गिगनार, बिछिया, डबङी, गङा इत्याद सबद इण कविता संग्रै री कोरणी नै रूपास देवै। राजस्थानी संस्कारां अर हेत प्रीत रा बिम्बां सूं इण काव्यक्रिति रौ रूपास चौगणौ बधै।

बाळपणै सूं म्हैं ई लकीरां रा  लीक-लिकोळिया काढिया, नाटक ई करिया, पण पछै सै छूटग्या अर कविता ई म्हारै  जीयाजूण रौ  कवच बणगी। हूं इणरै साथै ई अपणै आप नै सुरक्षित मानूं।

और कांई हालचाल छै.!

थांरौ ई-
 डा.आईदानसिंह भाटी


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