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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

मैं पीपल सा गर्मी में तपता रहा



मैं  पीपल  सा  गर्मी  में  तपता रहा

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मैं  पीपल  सा  गर्मी  में  तपता रहा
तुम लता  बनके मुझसे  लिपटती रही

गहरे  तूफां  में  पांवों  को  थामे रहा
तुम बरखा के संग  संग  रिपटती रही

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तेरी - मेरी संगत  का  असर यों हुआ
चँदा रोशन  सूरज  से सदा  ज्यों हुआ

साखी तुम हम बने तो खिले गुलमोहर
भौंरा सोचे चटकसे यह कब क्यों हुआ

मेरी  अंगुली ने  गेसू  तेरे  क्या छुए
तुम  छुईमुई  बनकर  सिमटती  रही

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मैंने बरसों  तलक तक सम्भाला जिसे
ख्वाब  वो तेरी आंखों  में है पल रहा

तुम हंसकर के ख्वाबों को रोशन करो
थकके सूरज भी  देखो उधर ढल रहा

मेरी  आंखें  परखती  तेरी  आंख को
तुम मन ही की मन में निपटती रही

 

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