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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

बुधवार, 25 मार्च 2009

प्रीत'ई गूंगी है

ग़ज़ल

-(राज बिजारनियां)

मानखो तो मून प्रीत'ई गूंगी है

सामीं छाती घाव पीड़ डून्गी है

लीर-लीर हुई जावै आँख फाड़ देख

दादू री दोवटी रहीम री लूंगी है

छोड़ बाम्बी ठाट सूं सांप घूमै हाट में

गतागूम जोगीजी वस हुई पूंगी है

बात तो है सांच सांच नै आंच कठै

मौत साव सस्ती जिन्दगाणी मूंघी है