मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
LOONKARANSAR, RAJASTHAN, India
..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

‘‘चाल भतूळिया रेत रमां’’ कविता संग्रै


कविता आपरै बगत रो पड़बिम्ब होवै। खास कर उण बगत जद कवि जमीन सूं जुड़ कविताई करै अनै आपरै ओळै-दोळै रै बिम्बां में निजू संवेदणां नै परोटै। उण रै उण निज में जगती भंवै। राजूराम बिजारणियांराजरै ‘‘चाल भतूळिया रेत रमां’’ कविता संग्रै नै बांचता इण बात री साख सवाई होवै।
राजूराम बिजारणियांराजरै इण कविता संग्रै री च्यार खंडां में सामल 61 कवितावां मुरधर माथै जूण रा आंटां नै अंवेरती बगै अनै जूण री अबखायां रा चितराम कोरै। कमती सबदां में गूंथीज्योड़ी आं कवितावां री छोटी-छोटी ओळ्यां में जूण री झीणी अनै अणथाग अकूंत संवेदणावां परोटीजी है।
‘‘चाल भतूळिया रेत रमां’’ री कविता में काळ री मार, बिरखा री चावना, रूंखां रो तप, रेत रो मरम सामल है तो तरक्की रा ताकळां सूं बिंधीजती धरती री पीड़ भी है। प्रीत रा नूवां चितराम आखी धरा सूं गळबांथ घालता बगै।
इण कविता संग्रै नै ‘‘मन री सींव पसरग्यो मून’’ खंड एक निरवाळो संग्रै बणा देवै। इण खंड री कवितावां सेना रै युद्धाभ्यास सारू खाली करवाईज्या 33 गांवां रै उजड़ण री पीड़ अंवेरीजी है। इण खंड रै एक-एक चितराम में गांवां री अंतस तास परगटै
राजूराम बिजारणियांराजरी कविता दीठ खासा ऊंडी है। मुरधर रै भंडाण छेतर री बोली रा सबद अनै जूण जतन रा अबोट दिठाव कविता री मारक खिमता नै और बधावै। आस जगावै कै राजूराम बिजारणियांराजराजस्थानी कविता में ठाई अनै ओपती ठौड़ बणायसी। भविख रै इण लूंठै कवि नै घणां-घणां रंग।
-ओम पुरोहितकागद
आभै रै लूमतै बादळ सूं / छुड़ाय हाथ,
मुळकती-ढुळकती / बा नान्ही-सी छांट!
छोड़ देह रो खोळ / सैहपरी बिछोह...!
गळगी-हेत में / रळगी-रेत में।
आखर-आखर जुड़ सबद बणै अर सबद-सबद सावळ भेळा होयां कोई ओळी रचीजै। सबदां रो भाईपो किणी ओळी नै कदैई गद्य तो कदैई पद्य री ओळख सूंपै। आज विधावां री सींवां घणी नजीक आयगी है। आं मांयलो झीणो भेद समझण खातर एक दीठ री दरकार होया करै। कोई ओळी कविता कद बणै अर उण ओळी रै जोड़ में किसी ओळी राखीज सकै, समझ इण संग्रै री केई कवितावां मांय देखी जाय सकै।
राजूराम बिजारणिया रो कवि मन आपरै आसै-पासै रै संसार मांय रमै। आपरै निजू जगत सूं जुड़ाव राखती आं कवितावां मांय जूण री अबखायां-अंवळायां सोरप-दोरप भेळै जिका रंग परोटीज्या है वै लांबै बगत तांई चेतै रैवैला। न्यारै न्यारै खंडां मांय राखीजी आं कवितावां रा केई सबळा चितराम नवी राजस्थानी कविता री ओप बधावैला। काळ रा सुर तो हरेक कवि उगेरै उगेरै, पण अठै गांव रै उजड़ण री जिकी पीड़ कविता रै मारफत राखीजी है वा काळजै ऊंडै उतरै।
चाल भतूळिया रेत रमांपोथी री कवितावां बांच लखावै कै कवि नै कविता रचण रो आंटो आयग्यो है। वो आपरै आसै-पासै रै संसार नै काव्य-विवेक रै पाण सांवठै रूप मांय आपां साम्हीं राखै। इण संग्रै री तीन खासियतां गिणा साकां- विसय री विविधता, भासा री समझ अर सांवठी बुणगट। युवा कवि राजूराम बिजारणिया नै कविता रै मारग लांबी जातरा सारू मंगळकामनावां।
-डॉ. नीरज दइया




कोई टिप्पणी नहीं: