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..कि स्वंय की तलाश जारी है अपने और बैगानों के बीच !!

सोमवार, 20 जनवरी 2014

बेटी

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बेटी तूं गलियों में हिम्मत से चलना
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खिलना  तो ऐसे  ज्यों कोई कमल हो
ढलना तो  ऐसे  ज्यों  कोई  गज़ल हो
धरना है  धीरज  ज्यों  पाले है धरती
बहना ज्यों  फूलों से  खुश्बू है झरती
डरना   नहीं  है   हँसकर  निकलना
बेटी तूं गलियों में हिम्मत से चलना
 
 
*       *       *
 
लड़ना  है  हक   की    लड़ाई  बदी से
भिड़ना  है  नजरें  मिलाना  सदी से
चढना है सूरज ज्यों अम्बर के सर से
बढना है  आगे  क्यों  बैठी हो डर से
पैरों   तले    सारे   कांटे   कुचलना
बेटी तूं गलियों में हिम्मत से चलना
 
 



दर से  निकलते   ही  नजरें  उठेगी
घर  से   निकलते   ही   बातें  बनेगी
डर  से  कदम   तुम  पीछे  ना धरना
पर से गगन में  तुम  परवाज़ भरना
चलना सम्भलकर डगमग ना करना
बेटी तूं गलियों में  हिम्मत से चलना
 
*       *       *
 
रोकेंगे  रस्ता कभी  भी ना रुकना
टोकेंगे पल  पल सभी तूं ना झुकना
झौंकेंगे  ज्वाला  में जब तब बढोगी
चौंकेंगे जिस दिन  तुम पर्वत चढोगी
बाबुल की आंखोंमें ख्वाबों सी पलना
बेटी तूं गलियों में हिम्मत से चलना
*    *    *
(राज बिजारणियां)


गुरुवार, 9 जनवरी 2014

. . .यूं ही चलते चलते

 
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दिल में हिन्दुस्तान सम्भाले

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मैं उस पनघट की मिट्टी हूं
जहां होती रुनझुन  पायल की
 
 
मैं जर्रा हूं उन गलियों का
जो जाने है गत घायल की
 
 
मैं  कतरा गंग नहर का हूं
जो सबकी प्यास बुझाता है
 

मैं  खुश्बू ताजे फूलों की हूं
जो बिछुड़ा प्रेम मिलाता हूं
 
 
स्वर्ण  सरीखे  धोरों  वाली
मैं उजली एक  कहानी  हूं
 

दिल में हिन्दुस्तान संभाले
मैं  भी इक  राजस्थानी हूं
 
*

 

मैं बेटी

 
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मइया मुझको जीना है

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पहली धड़कन
ज्यों ही धड़की
जाने कितनी
आंखें रड़की
प्रश्न पूछता
कोना कोना
मां चुप क्यों हो
कुछ तो कहो ना
 
माथे पर क्यों पसीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
दादी रूठी
चुप क्यों दादा
बाबुल तेरा
क्या है इरादा
गुमसुम आंगन
कहता मुझसे
कोई ना चाहे
मिलना तुझसे
 
जीवन चार महीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
देखूं मैं भी
चांद सितारे
हंसती नदियां
सागर खारे
मैं चाहूं कि
झूला झूलूं
बादल चढकर
अम्बर छूलूं
 
हक काहे को छीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
 
 

मां कहकर मैं
तुमको पुकारूं
घण्टो सूरत
तेरी निहारूं
घुटनों के बल
दौड़ूं अंगना
तेरे जैसे
पहनूं कंगना
 
नाचे मन तक् धिन्ना है
मइया मुझको जीना है
 
 
तितली के मैं
रंग चुराऊं
खुश्बू बन घर
तेरे आऊं
मैं चाहूं मां
तेरा आंचल
आंख समाऊं
बनकर काजल
 
रिस्ता फिर क्यों झीना है
मइया मुझको जीना है
 
 

मेरा मुझको
दोष बता दे
फिर चाहे जो
मुझे सजा दे
मैं बेटी तो
तुम भी बिटिया
सांसे लिखती
तुमको चिठियां
 
जीवन का जल पीना है
मइया मुझको जीना है
 
 
मुरझाई है
घर की क्यारी
डरती तेरी
राजदुलारी
मत रोको ना
आने दो मां
हंसने दो मां
गाने दो मां
 
बेटी खुश रंग हीना है
मइया मुझको जीना है

आभै उतरी प्रीत

(चाल भतूळिया रेत रमां...सूं)
 
 
 
 
आभै उतरी प्रीत
बादळ बण!
 
 
विरह अमूझी
मुळकी धरती
लाजां मरती
मिली निजरां
लुकती-झुकती
 
 
मिलणै
लुकणै
झुकणै रै मिस
सेनो-सेन
बात तो हुई!
 
 
बातां-बातां
ढळती रातां
बादळ धरती
धरती बादळ
अेकोमेक!
 
 
देही पसेव
नैणां नीर
दाझ मेटणी
झरती पीर
प्रीत री.!
 
 
प्रीत...
उतरै आभै
बण बादळ.!  
 
 


हेत - रेत


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खेत खेङिया  ख‘ळा खताया दांव में

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हेत रेत  रै भर् यो बिचाळै गांव में
सुरग सरीखो सुख पींपळ री छांव में
 
 
नाचै नौ नौ ताळ नाजुगो पिणघटियो
गौरी सिर धर माट पायलड़ी पांव में
 
 
कै राधा कै  सबरी मीरां - मेड़तणी
हारी कर - कर हेत कानूड़ै नांव में
 
 
मेह - नेह में  न्हावै नागा टाबरिया
खेलै छांटम-छांट गड़ा  भर ठांव में
 
 
प्रीत रीतरी जद सूं चाली गांव गळी
खेत खेङिया  ख‘ळा खताया दांव में

चांदड़लो गिगनार

 
 
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चांदड़लो गिगनार
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चांदड़लो    गिगनार।

परदेसां में पीव अमूझै,
महलां  बैठी  नार।।
 
 
@ @
 
 
चुड़लो, नाथ,बोरलो, बिछिया,
पायळ    री    झणकार।

थां  बिन  छेल  भंवर सा,
म्हारो  बदरंगी  सिणगार।

काळजियो कळपै किरळावै
 नैणां  झारम-झार।।
 
 
@ @
 
 
गिणता-गिणता आंगळियां पर,
दिन  बदळ्या  बण   मास।

नणदोई  जी  नणदल साथै,
थै  क्यूं  नीं   हो   पास।

पल-पल म्हारो जीव पतीजे,
मनड़ो तारम-तार।।
 
 
@ @
 
 
बसंत बीतग्यो बासी पड़गी,
फागण     री   फगुवार।

चेता चूक  चेत  सावणियो,
नैणां     काजळ   सार।

कुरजां कैइजो सायब जी नै,
आओ लारम-लार।।

मा

 
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मा सिव भगवान है
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चूल्हो उडावै
साव ठण्डी राख।
 
मटकी सूक्या होठ
पळींडो मरतो तिरसो
लेवड़ा कूदै भींत
थळी लकोवै मूंडो।
 
बोल..
ताता.!
विचार..
गळूंचिया खावता.!
 
आंगण सूं
घूंघटो काढती साळ

अधखुल्ला किवाड़
किवाड़ रै पल्लै
झरतो ज्हैर.!
 
आंगणों डरपै
नींव दरकै
 
पण मा..
आंख मींच
जाड़ भींच
पी जावै ज्हैर
आंगणैं नै
जोड़ण सारू
साळ सूं।
 
मा
कींकर कम है
सिव भगवान सूं.?


॥ आपके अवलोकनार्थ ॥

बिणजारो 2014 में
प्रकाशित मेरी रचनाएं



॥ आपरी दीठ सारू ॥



जागती जोत सितंबर 2013
में छपी म्हारी रचनावां





 
 
 

गज़ल





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प्रेम रो नांव कान्हो है
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प्रेम  वीरां  रो  बानो है
प्रेम परखै तो  तानो  है
 
 
रंगत री बात कै  करनी
प्रेम  सतरंगी  पानो  है
 
 
मिनखपण प्रेम रै  ताणी
नही तो खाली खानो है
 
 
प्रेम मीरां  है  राधा  है
प्रेम सबरी कै  छानो है
 
 
प्रेम मुरली  है होठां री
प्रेम रो  नांव कान्हो है